kaila devi mandir :- राजस्थान के करौली जिला के अंतर्गत त्रिकूट पर्वत के तलहटी तथा कालीसिल नदी के किनारे बसा एक अद्भुत धाम है जिसे कैला देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
राधे राधे प्रिय पाठकों अगर आप कैला देवी यात्रा पर जाने का प्लान बना रहे तो आपको यह लेख पूरा पढ़ना चाहिए जिसमें आपको कैला देवी के इतिहास से लेकर घूमने तथा दर्शन के बारे में विस्तार पूर्वक संपूर्ण जानकारी बताई गई जिससे आपको कैला देवी धाम की यात्रा और दर्शन करने में काफी ज्यादा सहूलियत मिलेगी।
कैला देवी यात्रा का वर्णन शुरू करने से पहले आपको कैला देवी मंदिर के इतिहास के बारे में जानना बेहद जरूरी है-
कैला देवी का इतिहास
उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर में मां चामुंडा देवी की पूजा की जाती है ।
पुराणों के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें ब्रह्मांड के सभी देवी देवताओं और जीव-जंतुओं को आमंत्रण दिया लेकिन भगवान शिव को अनदेखा कर दिया।
सती के पिता दक्ष थे और पति भगवान शिव शंकर
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पिता के द्वारा किए गए इस तरह के अपमान को माता सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ के हवन कुंड में कूद कर अपने शरीर की आहुति दे दी।
जब भगवान शिव को इस बात की भनक लगी तो वहां पहुंच कर सती के मृत शरीर को अपने बाजुओं में उठाकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे जिससे संसार खतरे में पड़ गया।
शिव की पीड़ा को भगवान विष्णु जी सहन नहीं कर पाए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
सभी टुकड़े 52 हिस्सों में कटकर अलग अलग जगहों पर जा गिरे और जहां जहां उनके शरीर के टुकड़े गिरे वहां वहां 1 शक्तिपीठ का निर्माण हुआ उन्हीं में से एक है केला देवी का यह मंदिर यहां पर देवी सती का मुख गिरा था इसीलिए उनकी पूजा यहां चामुंडा रूप में की जाती है।
लेकिन इस मंदिर के बारे में कुछ लोगों की ऐसी भी मान्यताएं हैं कि यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण की बहन योग माया का है परंतु पुराणों में इसका वर्णन मिलता है जिसमें शक्तिपीठ के रूप में इस स्थान को दर्शाया गया.
केला देवी मंदिर की स्थापना कैसे हुई ?
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार प्राचीन समय में यह स्थान पूरी तरह जंगलों से घिरा हुआ था वही पास से बहती हुई कालीसिल नदी के किनारे बैठकर बाबा केदारगिरी तपस्या किया करते थे।
इसी जंगल में एक दानव भी रहता था और वह आसपास तपस्या करने वाले साधु-संतों तथा यहां के लोगों को बहुत परेशान करता था।
1 दिन बाबा केदारगिरी की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी प्रसन्न हुई और उन्होंने इच्छा वर मांगने का वरदान दिया तब बाबा ने उनसे कहा कि हे देवी मुझे अपने दर्शन दिया तो मेरे जीवन का उद्धार हो गया बस आपसे विनती है यहां रहने वाले दानव को दंडित करो मां।
तब देवी मां कैला ग्राम में प्रकट हो गई और उस दानव का कालीसिल नदी के किनारे वध कर दिया जहां पर आज भी एक बड़ी सी पत्थर की चट्टान पर बड़े से दानव के पैर के निशान देखने को मिलते हैं और इस स्थान का नाम आज भी दानवगढ़ के नाम से जाना जाता है
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केला देवी की मूर्ति तिरछी क्यों है ?
कैला देवी मंदिर के गर्भ गृह में दो मूर्तियां स्थापित है जिसमें से एक प्रतिमा की गर्दन तिरछी है
मान्यताओं के अनुसार एक बार एक भक्त ने किसी कारण बस मां के दरबार तक नहीं पहुंच पाया और वह पूजा करते वक्त बोल कर गया था कि मैं वापस बहुत जल्द लौट के आऊंगा लेकिन आज तक वह लौट के नहीं आया तब से मां कैला देवी उसी के इंतजार में उसे देख रही हैं ।
केला देवी दर्शन करने आए हुए भक्तों की हर मुराद पूरी होती है अगर वह सच्चे मन से ध्यान लगाए तो मां उनकी झोली जरूर भर देती हैं ।
कैला देवी मंदिर के दर्शन कैसे करें ?
श्री सिद्ध शक्तिपीठ केला देवी दर्शन से पहले मंदिर के पास से बहती हुई कालीसिल नदी में भक्तों को सर्वप्रथम स्नान करना पड़ता है उसके बाद पूजा पाठ की सामग्री लेकर मंदिर परिसर के पास लाइन में खड़े होना होता है।
कैला देवी की पूजा कैसे करें
आदि शक्ति दुर्गा स्वरूप केला देवी की पूजा अर्चना शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपको पूजा पाठ के सामग्री कौन-कौन सी लगेगी।
पूजा-पाठ की सामग्री
- सिंदूर
- चूड़ियां
- चुनरी
- कुमकुम
- अखंड ज्योत
- कलश महावर
- नारियल
- चंदन
- अक्षत
- पानी आम के पत्ते
- हल्दी और भूरी मिट्टी
- 9 धन्य यानी कि (नौ अलग-अलग फल)
इन सभी सामग्रियों के साथ केला देवी के मंत्रों का जाप करते हुए अपने मनवांछित इच्छा पूर्ति की मनोकामनाएं मांगने से मनुष्य के सारी मुरादें पूरी होती है.
कैला देवी दर्शन समय
भक्तों के लिए पुजारियों के द्वारा मंदिर को प्रतिदिन प्रातः काल 5:00 बजे मंदिर को खोला जाता है और निरंतर रात्रि 11 बजे तक मंदिर खुला रहता है
केला देवी में मेला कब लगता है ?
हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आने वाले अष्टमी के दिन 17 दिवसीय लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के राज्य जैसे – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर मां के दरबार में अपनी मनवांछित इच्छा की अर्जी लगाते हैं।
नवरात्रि के शुभ अवसर पर आसपास के जिलों से पदयात्री ध्वज के साथ में लांगुरिया गीत गाते हुए मां के दरबार में पहुंचते हैं।
केला देवी मंदिर कब जाना चाहिए ?
- वैसे तो मंदिर में भक्तों का आना जाना साल भर लगा रहता है लेकिन नवरात्रि शुरू होते ही केला देवी भवन में इतने श्रद्धालु पहुंच जाते हैं कि गिनती करना मुश्किल हो जाता है,
अगर भीड़भाड़ से बचना चाहते हैं तो दोनों नवरात्रि को छोड़कर साल के किसी भी महीने में कैला देवी मंदिर जा सकते हैं।
- वहीं अगर आपको यहां का प्रसिद्ध लक्खी मेले का आनंद लेना है तो अप्रैल में आने वाली रामनवमी यानी कि चैत्र महीने में जाने की योजना बना सकते हैं.
- प्रारंभ होते ही 17 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के सभी राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु कैला देवी के दर्शन के लिए आते हैं।
केला देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे ?
बाया रेलगाड़ी
ट्रेन के माध्यम से कैला देवी मंदिर यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए इसका नजदीकी रेलवे स्टेशन गंगापुर जंक्शन जहां प्रतिदिन दिल्ली मुंबई जयपुर यह तो ट्रेनों का आवागमन होता है।
गंगापुर स्टेशन से कैला देवी मंदिर की दूरी मात्र 35 किलोमीटर है जहां से बाया ऑटो टैक्सी लेकर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
वाया वायुमार्ग
यदि आप का विकल्प कैला देवी पहुंचने के लिए वायु मार्ग तो इसका नजदीकी एयरपोर्ट सवाई मानसिंह जयपुर है जिसकी दूरी 160 किलोमीटर है।
दोस्तों कैला देवी मंदिर के अद्भुत रहस्य और केला देवी यात्रा की जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा अगर आपके लेख पसंद आया हो अपने दोस्तों के साथ फेसबुक में जरूर शेयर करें।
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