द्वारका धाम | द्वारकाधीश मंदिर यात्रा की – पूरी जानकारी

dwarka in hindi – नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम बात करने जा रहे हैं गुजरात सौराष्ट्र के अंतर्गत द्वारका जिले में स्थित चार धामों में एक द्वारका धाम यात्रा के बारे में आगे इस लेख में द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास और यात्रा से संबंधित सभी जानकारी को विस्तार वर्णन किया गया है जिससे द्वारका यात्रा करने में काफी ज्यादा सहूलियत मिलेगी ।

भगवान श्री कृष्ण के द्वारा बसाई गई द्वारकापुरी भले ही आज समुद्र की गहराई में डूब चुकी हो लेकिन श्रद्धालुओं के मन में आज भी उनके प्रति बेहद प्रेम है। तभी तो दुनिया के कोने कोने से हिंदू धर्म के लोग अरब सागर के तट पर बने द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं । चाहे गर्मी हो या सर्दी या फिर बरसात का मौसम हो यहां हर ऋतु में एक समान भक्तों की भीड़ देखी जाती है।

द्वारिका 7 प्राचीन नगरों में से एक हैं जिनमें से मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका (उज्जैन) , कांची और अयोध्या शामिल है।

यह हिंदू के प्रमुख चार धामों में से एक धाम तथा 7 पुरी में से एक है। इसीलिए ग्रंथों में इसे 2 द्वारका बताया गया।

  • पहला गोमती घाट द्वारका जहां द्वारकाधीश मंदिर है जो यहां का प्रमुख टेंपल है.
  • दूसरा बेट द्वारका जो द्वारिकापुरी है – यहां तक पहुंचने के लिए समुद्री मार्ग से जाना होता है. जिसकी दूरी द्वारकाधीश मंदिर से 30 किलोमीटर है.

द्वारका यात्रा जानकारी से पहले द्वारिकाधीश मंदिर के इतिहास और इसके रहस्य के बारे में बारे में जानना आपके लिए निश्चित रूप से जरूरी है –

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द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास व कहानी ?

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द्वारका नगरी का इतिहास श्री कृष्ण के द्वारा बसाई गई द्वारिका नगरी उनकी मृत्यु के बाद दैवीय प्रकोप के कारण पूरी तरह से समंदर की गहराइयों में डूब गई ।

बाद में द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण उसी समुंदर के तट पर उनके पड़पोते वज्रनाभ ने आज से लगभग 2500 वर्ष पहले करवाया था।

मथुरा छोड़ने के बाद कृष्ण ने यही से 36 वर्ष तक अपना राज्य पाठ किए और यही उनकी राजधानी रही जहां से संपूर्ण धरती की जीवन रेखा की नींव जुड़ी हुई थी।

द्वारकाधीश मंदिर पर लगे 52 गज के विशाल ध्वज को कई किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है इसके बारे में पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है जिसके बारे में कहा जाता है कि श्री कृष्ण समेत इस भूमि में 56 यादव वंशजों ने शासन किया था।

लेकिन इनमें से केवल 4 ही भगवान अवतार थे जिनमें से श्री कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध और प्रदुमन इन चारों के अपने अलग-अलग मंदिर बने हुए हैं और इनमें इन्हीं के ध्वज लहराते।

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बाकी के बचे हुए 52 प्रकार के यादव राजाओं के प्रतीक के रूप में 52 गज का विशेष महत्व रखने वाला ध्वज द्वारकाधीश मंदिर पर लहराया जाता है।

द्वारकाधीश मंदिर के प्रमुख प्रवेश द्वार गोमती घाट पर बनाई गई 56 सीढ़ियां द्वारका के सभी शासकों के प्रतीक है ।

द्वारिका धाम कहां है ?

द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के राज्य पाठ की राजधानी रह चुकी द्वारकापुरी भारत के पश्चिमी छोर में अरब सागर के तट पर स्थित गुजरात के सौराष्ट्र के अंतर्गत आने वाले जिला द्वारका में स्थित है। यहीं से भगवान श्री कृष्ण ने शासन किया था इसीलिए यह स्थान हिंदू तीर्थों का तीर्थ स्थल माना जाता है।

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1. द्वारकाधीश मंदिर

मंदिर

द्वारकाधीश मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने से पहले श्रद्धालुओं को गोमती घाट में स्नान करने की परंपरा है जो कि मंदिर के ठीक पीछे स्थित है।

इस नदी में स्नान करने का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यही वो जगह है जहां गोमती नदी और समुद्र का मिलन होता है जिसके कारण संगम का निर्माण होता है।

मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व यह सुनिश्चित करें कि अपने पास रखे हुए सामान को आप वहां बने हुए लॉकर में जमा करवाएं और उसके बदले में आपको जो लॉकर की चाबी दी जाती है उसे सुरक्षित रखें ताकि सामान वापस लेने में किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े.

मंदिर परिसर में दो प्रमुख द्वार बने हुए पहला मोक्ष द्वार और दूसरा स्वर्गद्वार लेकिन आपको प्रमुख गेट से ही अंदर प्रवेश करना है जो कि स्वर्गद्वार है।

इसके बाद आपको मंदिर में दर्शन के लिए भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी का जयकारा लगाते हुए लाइन में लगकर अपनी बारी आने का इंतजार करना होता।

यहां हर रोज हजारों की संख्या में पर्यटक दर्शन करने के लिए आते हैं लेकिन श्री कृष्ण जन्माष्टमी , रुक्मणी विवाह के शुभ अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

2. रुकमणी मंदिर

रुकमणी मंदिर के बारे में पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी समुद्र के किनारे शहर कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात ऋषि दुर्वासा से हुई और ऋषि मुनि ने श्री कृष्ण के महल पर जाने की इच्छा जाहिर की जिससे रुकमणी जी बहुत प्रसन्न हुई ।

महल की तरफ जाते वक्त रास्ते में माता रुक्मणी को बहुत प्यास लगी तभी श्री कृष्ण जी ने अपनी दिव्य शक्तियों से धरती पर बाणगंगा का निर्माण किया ।

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लेकिन कृष्ण और रुक्मणी का प्यार देखकर दुर्वासा ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने देवी रुक्मणी को हमेशा के लिए बिछड़ने का श्राप दे दिया जिससे उसी स्थान पर रुकमणी मंदिर का निर्माण कराया गया जहां पर माता को श्राप मिला था। और इसकी दूरी द्वारकाधीश मंदिर से 4 किलोमीटर है।

3. बेट द्वारिका पुरी

यहां भगवान श्री कृष्ण ने अपनी 16108 रानियों के लिए अलग-अलग स्वर्णिम महलों का निर्माण करवाए थे। और उनके राजा बनने के बाद सुदामा का मिलन इसी स्थान पर हुआ था इसीलिए यह दिव्य और रमणीय स्थान द्वारका यात्रा के दौरान बेहद दर्शनीय है।

आईलैंड को गुजराती भाषा में बेट कहा जाता है। और यह नगरी द्वारकाधीश मंदिर से 30 किलोमीटर दूर समुद्र से चारों तरफ से घिरा हुआ है.

इसके दूरी द्वारकाधीश मंदिर से 30 किलोमीटर का सफर बस स्टैंड टैक्सी के माध्यम से पूरी की जा सकती है लेकिन इसके आगे सफर ओखा जेटी से समुद्री जहाज में बैठ कर जाना पड़ता है और यह यात्रा 5 किलोमीटर की रहती है ।

यहां भगवान श्री कृष्ण का 5000 वर्ष पुराना मंदिर है जहां झांकियों के माध्यम से उनके जीवन की गतिविधियों को बड़ी खूबसूरती के साथ दर्शाया गया।

4. सोने की द्वारका पावन धाम

की द्वारका पावन धाम

बेट द्वारका में स्थित है क्या मंदिर द्वारकाधीश के बाद दूसरा सबसे खूबसूरत मंदिर है जिसका नाम पावन धाम बेट द्वारका है ।

इस मंदिर के भीतर भगवान श्री कृष्ण के जन्म से लेकर उनके अंतिम क्षणों तक के खूबसूरत पहलुओं को बड़ी खूबसूरती के साथ झांकियों के माध्यम से जीवंत लगने वाले मूर्तियों के रूप में प्रदर्शित किया गया मानो ऐसा प्रतीत होता कि यह मूर्तियां कुछ बोलने वाली हैं।

5. द्वारका समुद्री बीच

द्वारकाधीश की यात्रा के दरमियान अपनी जर्नी को और भी यादगार बनाने के लिए आप चाहें तो दर्शन के साथ-साथ यहां के समुद्री बीच में वाटर स्पोर्ट का आनंद उठा सकते हैं जिसमें स्पीड बोट , ऊंट की सवारी ,घुड़सवारी केअलावा भी कई प्रकार की वाटर एक्टिविटी कराई जाती है।

6. गोपी तालाब द्वारका

बेट द्वारका के अंतर्गत स्थित गोपी तालाब यानी कि गोपीनाथ मंदिर वही स्थान है जहां गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ अंतिम रासलीला की थी और कृष्ण जी के देह त्यागने के बाद सभी गोपियां इसी सरोवर में अपने प्राण त्याग दिए थे।

इसी तालाब में सभी गोपियां स्नान करने के लिए आती थी और यहीं पर उनका सजना सवरना होता था इसीलिए यहां की मिट्टी पीले रंग की होती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण जी ने गोपियों को सिंगार करने हेतु यहां की मिट्टी को चंदन का रूप दे दिया जिससे वह सुंदर दिखें।

गोपी नाथ धाम में जो भी भक्त दर्शन के लिए आता है तो यहां से मिट्टी का बना हुआ चंदन अपने साथ अवश्य ले जाता।

7. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यह द्वारकाधीश मंदिर से बेट द्वारका के रास्ते पर 20 किलोमीटर दूर स्थित है

दूरदराज से जाने वाले तीर्थयात्री श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी के साथ-साथ नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए अवश्य जाते हैं यहां का मुख्य आकर्षण 125 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा है जो कई किलोमीटर दूर से स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

8. सुदामा सेतु , पंचनंद तीर्थ

गोमती नदी पर बना सुदामा सेतु केबल ब्रिज है जो ऋषिकेश में स्थित लक्ष्मण झूला के तर्ज पर बनाया गया।

यह गोमती घाट और पंचतीर्थ को जोड़ता है जिसमें पैदल चलना अपने आप में एक सुखद अनुभव का एहसास कराता है।

यहां बना पंचकुंड द्वारका यात्रा के दौरान विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहां चारों तरफ समुद्र का खारा पानी होने के बावजूद भी समुद्र के बगल में ही बने पांचों कुंड में पानी पीने योग्य और काफी स्वादिष्ट होता है।

द्वारका कब जाना चाहिए ?

वैसे तो द्वारकाधीश के दर्शन करने हेतु साल के 12 महीने भक्तों का आवागमन लगा रहता है लेकिन द्वारिका धाम की यात्रा करने के लिए सबसे अधिक श्रद्धालु सर्दियों के समय जाते हैं अपितु नवंबर से लेकर मार्च के बीच यहां भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ देखी जाती है।

यहां हर वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी, तुलसी विवाह के दिन भक्तों की अपार संख्या होती है जो गिनने में नहीं आती।

द्वारका नगरी में रुकने तथा खाने पीने की क्या व्यवस्था है ?

  • द्वारकाधीश मंदिर परिसर के आसपास कई सारे छोटे बड़े होटल तथा धर्मशालाएं बने हुए जिनका प्रतिदिन का किराया 500 से 1000 के बीच होता है ।
  • और इन्हीं के आसपास कई रेस्टोरेंट भी बने हुए हैं जिनमें ₹100 से ₹150 के बीच काफी स्वादिष्ट गुजराती खाना मिल जाता है।
  • अगर आपको गुजराती खाना पसंद नहीं है और आप रेस्टोरेंट में खाना नहीं खाना चाहते तो वहीं पास में बना मंदिर ट्रस्ट के तरफ से प्रसादालय में ₹20 में भरपेट भोजन ग्रहण कर सकता है।

द्वारका धाम कैसे पहुंचे ?

द्वारकाधीश मंदिर तक पहुंचने के लिए आपके पास तीन बड़े विकल्प है अगर हम पहले ऑप्शन की बात करें तो ट्रेन

बाय ट्रेन

दोस्तों अगर आप ट्रेन के माध्यम से द्वारका धाम तक पहुंचने की सोच रहे हैं तो इसका नजदीकी रेलवे स्टेशन द्वारिका जंक्शन है लेकिन अगर आपके शहर से यहां के लिए डायरेक्ट रेलगाड़ी उपलब्ध नहीं है तो आप राजकोट या फिर अहमदाबाद पहुंचकर द्वारका नगरी के लिए ट्रेन पकड़ सकते हैं।

बाया हवाई जहाज

अगर आपका द्वारकाधीश मंदिर पहुंचने का माध्यम हवाई जहाज है तो इसका नजदीकी हवाई अड्डा पोरबंदर एयरपोर्ट है जिसकी दूरी लगभग 104 किलोमीटर है।

द्वारिका यात्रा में कितने दिन लग लगते हैं ?

दोस्तों यदि आप केवल द्वारकाधीश मंदिर दर्शन के पश्चात वापस लौट आना चाहते हैं तब आपको वहां रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

लेकिन मेरा सुझाव है ऊपर बताई गई सभी स्थानों घूमने के लिए जाते हैं तब आपको 1 दिन वहां रुक कर आसपास की जगहों को एक्सप्लोरर करना होगा।

द्वारका पुरी धाम यात्रा में कुल खर्च कितना लगता है?

टैक्सी के द्वारा द्वारका और बेट द्वारका घूमने में प्रति व्यक्ति कुल खर्च

  • टैक्सी + समुद्री जहाज ₹500 प्रति व्यक्ति
  • 1 दिन का होटल खर्च ₹1000 जिसमें दो व्यक्ति आसानी से ठहर सकते हैं
  • 2 दिन का खाने-पीने का खर्च ₹600 प्रतिशत

FAQ- द्वारकाधीश के बारे में सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले प्रश्न ?

Q.- भगवान श्री कृष्ण द्वारका क्यों गए?

कंस के वध होने के पश्चात जरासंध द्वारकापुरी में बसे यादवों के ऊपर आक्रमण कर दिया तभी श्री कृष्ण जी ने उनकी सुरक्षा हेतु मथुरा से अपने 18 सहपाठियों समेत द्वारिका के लिए प्रस्थान किए और यहीं पर भगवान विश्वकर्मा जी से विशाल भवन का निर्माण कराया और द्वारिकापुरी अस्तित्व में आया।

Q.- द्वारकाधीश मंदिर किसने बनवाया ?

द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2500 वर्ष पहले कृष्ण के पड़पोते वज्रनाभ के द्वारा करवाया गया लेकिन इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है यह सिर्फ पुराणों में आधार पर वर्णित किया गया है.

निष्कर्ष

आशा करता हूं आपको द्वारका यात्रा तथा द्वारकाधीश मंदिर दर्शन की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो में नीचे कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं

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