नमस्कार दोस्तों आज हम उत्तराखंड के चमोली जिले में नर नारायण पर्वत के मद्य अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बद्रीनाथ की यात्रा के बारे में बताने बाला हु जो की चार धाम यात्रा में से एक धाम बद्रीनाथ धाम भी है जो की भगवान व्रिष्णु यानि की नारायण को समर्पित है ।
दोस्तों आज के इस लेख में हम जानेंगे बद्रीनाथ की यात्रा कैसे करे , बद्रीनाथ में रुकने और खाने की क्या व्यबस्था है और कहाँ रुके , कैसे जाये , साथ में जानेगे की बद्रीनाथ जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है और यहाँ की कितने दिन की यात्रा बनाये , बद्रीनाथ यात्रा का खर्च कितना लगेगा और बद्रीनाथ में घूमने की जगह कौन कौन सी है इस लिए आपसे अनुरोध है लेख को पूरा पढ़े ।
बद्रीनाथ धाम में साल भर सर्दियों का मौसम होता कभी कभी तो मई जून के महीने में यहाँ बहुत ज्यादा बर्फ़बारी देखने को मिलती है
हिन्दू धार्मिंक दृष्टि से बदरीनाथ का यह धाम बहुत ही महत्वपूर्ण है इसके बारे पौराणिक कथा यह भी है की सतयुग तक भगवान वृषनु को यहाँ हर प्राणी यानि की जीव जंतु मनुष्य और देवी देवता सभी भगवान के साक्षात् दर्शन कर सकते थे ।
लेकिन त्रेता युग के आरम्भ होते ही उन्हें केवल देवताओं और ऋषिमुनि ही देख सकते थे परन्तु द्वापर युग का आगमन होने से पहले ही भगवान व्रिष्णु को श्री कृष्ण रूप में अवतरित होने था तब से लेकर आज तक बद्रीनाथ में प्रभु नारायण का विग्रह रूप ही दर्शन होते है ।
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बद्रीनाथ का अर्थ
बद्री यानि बेरी और बेरी मतलब बेरी का पेड़ जो माता लक्ष्मी का स्वरुप है और नाथ मतलब माता लक्ष्मी के पति जी वो भगवान व्रिष्णु के तप स्थली में उन्हें छाया देने के लिए माता लक्ष्मी बेरी का पेड़ बन कर खड़ी हो गयी थी तक से इस स्थान का नाम बेरीनाथ हुआ बाद में इसे बदलकर बद्रीनाथ कर दिया गया ।
बद्रीनाथ की यात्रा कैसे पहुंचे ?
हालाँकि बद्रीनाथ जाने का एक ही मार्ग है वो है बया रोड लेकिन पहले ये जान लेते है आप जिस भी शहर से आ रहे है या जिस भी राज्य से आ रहे वहां से आपके लिए क्या क्या साधन है उसके लिए 2 बड़े बिकल्प है ट्रैन और हवाई जहाज ।
बया ट्रैन
अगर आप ट्रैन के द्वारा बद्रीनाथ की यात्रा जाने की सोच रहे है तो इसका नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार या फिर ऋषिकेश है इसके आगे का सफर बस या प्राइवेट टैक्सी के द्वारा ही करनी पड़ेगी क्योंकि इसके आगे का रास्ता पर्वतो और घाट सेक्शन से बना हुआ है जिसकी बजह से रेलवे ट्रैक संभव नहीं है ।
मेरी सलाह यह है की अगर आप ट्रैन से आ रहे है तो हरिद्वार पहुँचिये क्योंकि वहां से बस की सुबिधा काफी अच्छी है
हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी 316 किलोमीटर
बया हवाई मार्ग
यदि आप हवाई यात्रा करके बद्रीनाथ पहुंचना की सोच रहे है तो इसका नजदीकी एयरपोर्ट जॉली ग्रांट देहरादून का है जहाँ से आगे का सफर बस के माद्यम से 330 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ेगा ।
जब आप इन रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट तक पहुंच जाये तो स्टेशन से बहार आपको ढेर सारी बसे बद्रीनाथ जाने बाली मिल जाएँगी उनमे से कुछ गाड़िया जोशीमठ तक ही जाती है इसीलिए बैठने से पहले जरूर पूछ ले जो सुबह 5 बजे से शाम 8 बजे तक चलती रहती है ।
बस से सफर करते हुए ऊँचे ऊँचे पर्वतो में बर्फ की चादर से ढके हुए पहाड़ो की खूबसूरती और इनके पीछे छुपे बादल आपके सफर को स्वर्ग सा महसूस करएगा ।
चलिए अब हम बात करते है बद्रीनाथ के दर्शन के बारे में जिसेक लिए आप बद्रीनाथ की यात्रा पर गए है
बद्रीनाथ के दर्शन कैसे करे ?
भगवान् व्रिष्णु के दर्शन करने से पहले तप्त कुंड में स्नान करना पड़ता है जो बद्रीनाथ मंदिर के बगल में स्थित है लेकिन इस प्राकृतिक कुंड का पानी काफी गर्म होता है जो यहाँ की ठण्ड में स्नान करने में काफी सुकून मिलता है ।
बद्रीनाथ धाम में स्नान करने के 5 प्रमुख कुंड है जो इस प्रकार है –
- तप्त कुंड
- नारद कुंड
- सत्यपथ कुंड
- त्रिकोण कुंड
- मनुवी कुंड
स्नान करने के बाद काउंटर से टोकन लेना पड़ता है उसके बाद स्वामी नारायण के दर्शन के लिए लाइन में लग जाते है जय गोविंदा जय कन्हैया के नारे लगते हुए अपनी मनवांछित इक्षा लेकर सिद्द्त से पूजा अर्चन करते हुए भक्त आगे बढ़ते है ।
लेकिन दर्शन को जाने से पहले आपको इस बात का जरूर ध्यान रखना होगा की मोबाइल या कैमरा किसी भी प्रकार उपकरण मंदिर परिसर में ले जाना सख्त मना है
इसीलिए आप अपने फ़ोन या कैमरा को अपने होटल में ही रख दे या फिर वही पर लाकर सुबिधा उपलब्ध जहाँ अपने सामान जमा कर सकते है उसके बाद दर्शन करने जाये ।
बद्रीनाथ के प्रमुख दार्शनिक स्थल एवं घूमने की जगह
बद्रीनाथ यात्रा के दौरान आस पास की प्रमुख घूमने बलि जगहों के भी दीदार करने जा सकते है जो काफी मशहूर टूरिस्ट प्लेस है
1. चरण पादुका
जब साक्षात् नारायण धरती लोक में पहली बार आये थे तो पहला कदम यही पर रखा था ये जगह बद्रीनाथ मंदिर से ढाई किलोमीटर चढ़ाई रास्ते पर स्थित है ।
जहाँ भगवान वृषनु के चरण चिन्ह मौजूद है जिसका दर्शन मात्रा सरे पापो से मुक्ति मिल जाती है भला सोचिये की पूरे संसार का सौंदर्य धारण करने बाले प्रभु के चरणों की आप पूजा करने का सुअभाग्य आपको मिला है ।
2. बसुधारा झरना
इस झरने का नाम आपने बद्रीनाथ फिल्म में जरूर सुना होगा बद्रीनाथ मंदिर से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बसुधारा झरना जिसे अमृत की बूंदे कहा जाता है कहा तो ये भी जाता है की इस झरने का पानी किसी पापी मनुष्य में ऊपर एक बूँद भी नहीं गिरता ।
ये चमत्कारी झरना अपने पीछे कई रहस्य को छिपाये हुए है पर्वतो की श्रंखला से 400 फिट की ऊंचाई से गिरते समय पानी की जलधारा छोटी छोटी बूंदो में बिखर जाती है जो देखने में मोतियों की तरह दिखाई पड़ती ।
इसीलिए इस वॉटरफॉल का दीदार करने के लिए भारत में ही नहीं बल्कि विदेशो से भी काफी ज्यादा पर्यटक इसका दीदार करने आते है
कहते है इस चमत्कारी झरने का पानी यदि आपके ऊपर गिरता है तो आप इस दुनिया में पुण्य आत्मा हो और उसे मोक्ष की प्राप्ति मिलती है ।
झरने का पानी बहुत सारे जड़ी बूटियों को छू कर नीचे गिरता है जिसकी बजह से जब मनुष्य के ऊपर गिरता है तो उसके बहुत सारे स्किन रोगो से मुक्ति मिल जाती है इसीलिए इसे अमृत की बर्षा भी कहा जाता है ।
बद्रीनाथ यात्रा में जाये तो इस वॉटरफॉल में जरूर विजिट करे और आजमाए की क्या आपके ऊपर झरने की जलधारा गिरती है ।
3. माडा
भारत का अंतिम गांव बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसे भारत का अंतिम गांव होने का गौरव प्राप्त है इसके बाद इंडिया और चीन का बॉर्डर आ जाता है ।
यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती बर्फीले पहाड़ और घने जंगल इसे और भी सुन्दर बना देते है ।
4. व्यास गुफा
माडा से आगे आधा किलोमीटर और बढ़ने पर पड़ेगा व्यास गुफा है यहाँ भी दर्शन अवश्य करने जाये पहाड़ो पर बना ये उफ़ा पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है
5. गणेश गुफा
व्यास गुफा से आधा किलोमीटर आगे जाने पर पड़ता है गणेश गुफा जहाँ भगवान गणेश जी का मंदिर है जो गुफा के अंदर मौजूद है यहाँ दर्शन करने काफी भक्त आते है ।
6. भीम पुल
सरस्वती नदी पर बने इस पल के बारे में पौराणिक तथ्य है जो कहा जाता है की जब पांडवो को स्वर्ग की तरफ जाना था और नदी का बहाव बहुत तेज होने की बजह से पांडव भीम ने पहाड़ की विशाल चट्टान को उठा कर नदी के एक छोरे से दुसरे छोर रख दिए और इस के द्वारा पांडव ने स्वर्ग की तरफ गए थे ।
वो पुल बद्रीनाथ में आज भी पाउजूद है अपनी यात्रा में इस ऐतिहासिक धरोहर को देखने अवश्य जाये
7. सरस्वती माता मंदिर
भीम पल से थोड़ा सा आगे आने पर मिलेगा माता सरस्वती का मंदिर जहाँ दर्शन करने जाये और अपनी मन्नते माँ से जरूर मांगे जिसके लिए आप बद्रीनाथ यात्रा पर निकले है
8. भारत की आखिरी दुकान
सरस्वती मंदिर से 1 किलोमीटर आगे बढ़ने पर पड़ेगा भारत की अंतिम दुकान जहाँ पर चाय नास्ता कारण जा सकते है और उसके साथ भारत की अंतिम दुकान भी है जो यादो के तौर पर आपको हमेशा याद रहेगा की आपने इंडिया की लास्ट दुकान में चाय पिया था ।
बद्रीनाथ में कहाँ रुके ?
- आश्रम– बद्रीनाथ यात्रा में रुकने की सबसे अच्छी और सस्ता बिल्कप है वहां के आश्रम रहने और खाने की काफी अच्छी व्यवस्था होती है .
- गढ़वाल मंडल का गेस्ट हॉउस– ये उत्तराखंड राज्य का सरकारी गेस्ट हॉउस है यहाँ पर डोरमेसट्री है जिसका किराया एक रात का मात्र 45 रूपए लगता है जहाँ आप चाहे तो रुक सकते है अगर आप बैचलर है तो ये आपके लिए बेस्ट होगा.
- होटल- बद्रीनाथ के आस पास ढेर सारे प्राइवेट होटल देखने को मिलेंगे जो की 400 रूपए से लेकर 10 हजार तक किराया होता है ये निर्भर करता है की आप कैसा होटल लेते है
खाने की व्यवस्था बद्रीनाथ में नार्थ इंडियन , साउथ इंडियन , के अलाबा हर तरह के खाने की व्यबस्था है जो की 150 से 200 रूपए थाली में काफी शानदार भोजन मिल जाता है ।
बद्रीनाथ धाम के रास्ते में पड़ने बाले तीर्थ स्थल जिन्हे लौटते समय जरूर जाये जैसे -
- रुद्रप्रयाग – यहाँ मन्दाकिनी और अलकनंदा नदी का संगम है
- गरुण गंगा – यहाँ अलकनन्द और गरुण नदी का संगम है और साथ में गरुण जी का मंदिर जिसकी मान्यता है की जो कोई भी व्यक्ति बद्रीनाथ दर्शन से लौटने वक्त यहाँ स्नान करता है और साथ में पत्थर का एक छोटा टुकड़ा अपने साथ ले जाते है तो उसे सांपो का डर नहीं रहता।
- जोशीमठ – हिन्दू धर्म के प्रचार करने बाले गुरु शंकराचार्य जी के चार मठ पूरे भारत में बनाये गए जिनमे से ये एक है । बद्रीनाथ से लौटते समय यहाँ रात्रि विश्राम करने के लिए सबसे बेट जगह है.
- पांडुकेश्वर – जो फूलो की घाटी के लिए विश्व प्रसिद्द है इस स्थान को पांडवो के पिता पाण्डु ने बसाया था और पांच पांडवो ने यही जन्म लिया था .
- वृषनु प्रयाग -यहाँ वृषनु गंगा और धौली गंगा का मिलन होता है .
- हनुमान चट्टी – इस स्थान में पहली बाहनुमान जी ने पांडवो को मिले थे .
बद्रीनाथ कब खुलता है
बद्रीनाथ की यात्रा करने से पहले ये जान लेना बहुत जरूरी होगा की बद्रीनाथ मंदिर कब खुलेगा तो मंदिर खुलने का समय मई महीने में अक्षय तृतीया के समय कपाट खोल दिया जाता है और वापस कपाट बन्द होने का समय कार्तिक पूर्णिमा के दिन ऑक्टूबर में बंद हो जाता है
यानि की बद्रीनाथ मंदिर 6 महीने के लिए खोला जाता है अगले 6 महीने के लिए बंद हो जाता है । इसका कारण है की यहाँ बहुत ज्यादा बर्फ़बारी होती है जिसकी बजह से रास्ते और मंदिर पूरी तरह से बर्फ से ढँक जाते है ।
बद्रीनाथ कब जाये
- मई और जून के महीने में सबसे ज्यादा श्रद्धालु बद्रीनाथ दर्शन के लिए जाते है और ये समय यहाँ जाने का पीक टाइम होता है क्योंकि गर्मियों की छुट्टियों कारण काफी ज्यादा श्रद्धालु दर्शन हेतु बद्रीनाथ धाम जाते है जिसकी बजह से रहने और खाने की सभी चीजों का खर्चा तीन गुना तक बढ़ जाता है .
- अगर आप इन सबसे बचना चाहते है और आपके पास समय है तो सितम्बर और ऑक्टूबर में बद्रीनाथ जाने का सबसे अच्छा समय होता है क्योंकि इस समय यहाँ पर ज्यादा भीड़ भाड़ भी नहीं होता जिससे होटल में ठहरने का चार्ज काफी कम होता है
- दोस्तों बरसात के समय जुलाई और अगस्त में बद्रीनाथ जाने से बचे क्योंकि यहाँ पर भूखलन होने की संभावना ज्यादा रहती है जिससे आपकी यात्रा में आनंद नहीं आएगा ।
बद्रीनाथ यात्रा कितने दिनों की होती है
बद्रीनाथ यात्रा के लिए आपके पास कम से कम 4 दिन का समय होना चाहिए और ये 2 दिन हम हरिद्वार से बद्रीनाथ तक के सफर में जाने के लिए और वापस हरिद्वार लौटने तक के लिए 2 होना चाहिए ।
आप भारत में जहाँ से भी बद्रीनाथ को जा रहे है हम उस समय को काउंट नहीं कर रहे है मै केवल हरिद्वार से बद्रीनाथ की यात्रा को ही जोड़ रहे है ।
बद्रीनाथ की कथा
बद्रीनाथ कभी भगवान शिव का धाम हुआ करता था लेकिन पालनहारा व्रिष्णु जी के अनुरोध पर उन्होंने इस स्थान को छोड़ कर केदारनाथ धाम को चले गए ।
शिव जी के बद्रीनाथ छोड़कर केदारनाथ जाने का कारण सतयुग में दुर्दम नाम का एक दानव हुआ करता था जो सूर्य देवता का अनन्य भक्त था सूर्य भगवान की हजारो बर्षो तक तपस्या करने के उपरांत प्रभु बहुत खुश हुए और उस से मन इक्षा बरदान मांगने को कहते है
तब उस दुर्दम दानव ने अमरत्व का वरदान माँगा उसके जबाब में सूर्य देवता ने कहा की हे दानव जो इस सृष्टि में जन्म लिया है उसका अंत एक दिन निश्चित है तब उसने एक हजार कबच कुण्डल का बरदान माँगा जिसे बचन बद्ध भगवान को देना पड़ा है जिससे उसका नाम सहत्र कबच हो गया ।
और उसे लगा की अब वो अमर हो चुका है फिर एक दिन अपनी लाखो दानव सेना लेकर देवलोक पहुंच गया और सहत्र कबच की बजह से देवताओं से उसकी जीत हुयी।
उसका बद्ध करने के लिए भगवान वृष्णु को 2 अलग अलग रूपों में जन्म माता मूर्ती के गर्व से जन्म लेना पड़ा जो नर और नारायण के रूप में हुआ ।
नर अलकनद नदी के एक छोर पर तप करते और दूसरे छोर पर नारायण
एक बार भगवान व्रिष्णु शिव की तपस्या करने के लिए अलकनदा नदी के किनारे बैठ कर तप कर रहे थे जिसे देखकर लक्ष्मी जी ने उन्हें छाया देने के लिए बेरी का पेड़ बनकर खड़ी हो गयी जिससे इस पावन स्थल का नाम बेरीनाथ पड़ा बाद में बदलकर इसका नाम बद्रीनाथ कर दिया गया ।
बद्रीनाथ यात्रा का खर्च
बद्रीनाथ धाम में यात्रा के दौरान 4 दिनों की यात्रा के दौरान रहने , खाने और प्रसाद का चार्ज मिनिमम 3 हजार रूपए लग जायेंगे दोस्तों मै केवल हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने और दर्शन करके लौटने का चार्ज बता रहा हु ।
और इस चार्ज में आप जहाँ से भी आ रहे हरिद्वार रेलवे स्टेशन तक उसका ट्रैन या बस का किराया नहीं जोड़ा गया है वो आपके ऊपर डिपेंड करता है की आप किस राज्य या शहर से है ।
बद्रीनाथ में पिंड दान कहाँ करते है
बद्रीनाथ की यात्रा बहुत से लोग अपने प्रियजाबो की पिंड दान करने के लिए जाते है दोस्तों जब आप मंदिर में दर्शन करने के बाद बहार आएंगे तो आपको बाहर आते ही ब्रह्म कपाल मिलेगा जहाँ पिंड दान किया जाता है तो जो भी व्यक्ति पिंड दान करना चाहता है तो यहाँ जाकर कर सकता है जो की तप्त कुंड के पीछे बना हुआ है ।
FAQ – Badrinath ki yatra के बारे में पूछे जाने बाले प्रश्न
बद्रीनाथ में कौन सी नदी है
बद्रीनाथ में भारत की प्रमुख और हिन्दू तीर्थ की मुख्य देवी अलकनंदा नदी बहती है जो बद्रीनाथ मंदिर के बगल से नर और नारायण पर्वत के बीचो बीच बहती है ।
बद्रीनाथ यात्रा का खर्च
बद्रीनाथ धाम में यात्रा के दौरान 4 दिनों की यात्रा के दौरान रहने , खाने और प्रसाद का चार्ज मिनिमम 3 हजार रूपए लग जायेंगे दोस्तों मै केवल हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने और दर्शन करके लौटने का चार्ज बता रहा हु इस चार्ज में आप जहाँ से भी आ रहे हरिद्वार रेलवे स्टेशन तक उसका ट्रैन या बस का किराया नहीं जोड़ा गया है
बद्रीनाथ का अर्थ
बद्री यानि बेरी और बेरी मतलब बेरी का पेड़ जो माता लक्ष्मी का स्वरुप है और नाथ मतलब माता लक्ष्मी के पति जी वो भगवान व्रिष्णु के तप स्थली में उन्हें छाया देने के लिए माता लक्ष्मी बेरी का पेड़ बन कर खड़ी हो गयी थी तक से इस स्थान का नाम बेरीनाथ हुआ बाद में इसे बदलकर बद्रीनाथ कर दिया गया ।
निष्कर्ष –
दोस्तों इस लेख में आपने बद्रीनाथ की यात्रा कैसे करे सम्पूर्ण जानकारी के साथ बद्रीनाथ कब जाये , कहा रुके, कैसे जाये , बद्रीनाथ के दार्शनिक स्थल और घूमने की जगह के साथ साथ बद्रीनाथ जाने का खर्च क्या लगेगा इन सभी बातो को आपने अच्छे से जान लिया होगा आसा करता हु की बद्रीनाथ यात्रा की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी ।
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प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल –
बद्रीनाथ जी की यात्रा वृत्तांत सुनकर बहुत आनंद आया । मन प्रसन्न हो गया ।
आपके सुझाये गये समयानुसार सितंबर – अक्टूबर माह में यात्रा के बारे में विचार बन गया है ।
धन्यवाद ।
जय बद्रीनाथ भगवान की ।
बद्रीनाथ भगवान जी की यात्रा वृत्तांत सुनकर बहुत आनंद आया । मन प्रसन्न हो गया ।
धन्यवाद ।
जय बद्रीनाथ भगवान की ।